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fp _03🖤

Tragedy Action Others

4  

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Tragedy Action Others

कलंक

कलंक

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घटनाएं ऐसी घट गईं

 खुशियों की छटाएं हट गईं।

जो न होना था वो हो गया 

  उस पर से जुदा तू भी हो गया।


समझ न सकूं , कलंक है या अफवाह सी है

  मगर जबसे सुना है इसके बारे में , न जाने रूह क्यों कुदरत ए तबाह सी है।


तकलीफ़ जकड़ गई है सीने में 

अब वो मज़ा नहीं रहा जीने में

किरदार ही बदलते जा रहे हैं मेरी गम ए ज़िंदगी में ग़ालिब 

अब रज़ा नहीं रही पीने में ।


ख्वाहिशें बदर का किरदार हो गया हूं

न जाने क्यों खुशियों का तलबगार हो गया हूं

देखता हूं खुद को जब अतीत के पन्नों में 

लगता है कि अब मैं गुलज़ार हो गया हूं।


खुशियों के पल को तरस गया हूं 

बिन मौसम बरसात सा बरस गया हूं

घने काले वीरान कोने का जो पंछी होता है 

मैं हु ब हु उस जैसा बन गया हूं।


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