STORYMIRROR

Shubham Srivastava

Abstract

4  

Shubham Srivastava

Abstract

कलमकार

कलमकार

1 min
246

मैं हूँ एक कलमकार

इसका मैनू ना रत्ती भर भी घमंड

मिला जब मुझे यह विरसे से

लिखना शुरू किया कुछ अरसों से

गली का दर्द में वर्सो में।


देव-दैत्य दोनों मेरे दिमाग में

कोलाहल मेरे सामने

अखरते ना जाने वो मेरे सवालों से

पैसा ले मौज मार।


मौज मार मत पढ़ इन बवालों में

इंसानियत जकड़ी देखी मैंने

धर्म की दीवारों में

खुश है घरौंदा बनाकर,

काँच की मीनारों में

नहीं भाते मुझे ये सब क्योकि

मैं हूँ एक कलमकार।


एक छोटा सा कलमकार

ना शून्य ना इकाई

मैं ब्रह्म की परछाई

दोनों गंतव्य ब्रह्म के

और ना मैं कोई अभिमानी।


महामारी में बिलखते बच्चे

पर नहीं है कोई दवाई

कानून के नयन में पट्टी

कैसे पड़ेगा कुछ दिखाई।


तो मैंने भी बंद करली आखिर

मैं हूँ एक कलमकार

एक छोटा सा कलमकार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract