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Shubham Srivastava

Abstract

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Shubham Srivastava

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ज्वलंत

ज्वलंत

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कुछ तो होगा उस बन्दे में

जिसे लगा है जमाना गिराने में।


इंसानियत सीखी उसने

जब लोगों ने फरियादें माँगी।


टूटते हुए तारों से

और गिरा पेड़ों से।


जलाकर पूरी तपिश की

इन सर्द रातों की।


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