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Shubham Srivastava

Abstract Inspirational

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Shubham Srivastava

Abstract Inspirational

लाल सलाम (सीधी बोली)

लाल सलाम (सीधी बोली)

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यह कविता नहीं बोली है

जो सीधे दिल से निकली है

पसंद आए तो ताली

और अगर न आए

तो फिर अंदाज़ा है


मुझे कितनी पड़ने वाली है गाली

मेरी तारीफ़े तुम्हें तकलीफ़ लगी

फिर मत बोलना लड़के कॉम्प्लीमेंट नहीं देते

अगर दिक्कत थी तो आगाह करती

पर तुम्हारें ज़ेहन में कुछ और बात थी


मर्दानी या फिर सेंसिटिव

चार दिन बात क्या करली

तुम्हें लगा इकरार है

इश्क और आकर्षण में

आसमान-पाताल का अंतर होता है


इश्क़ में लगते हैं तीन महीने

लगती हैं राते हज़ार

कहनी होती है ना जाने कितनी अनकही बाते

पर अपना किधर कुछ हुआ एैसा

मुझे भान है अधिकारों का

इसलिए लोगों के लिए लड़ता हूँ


हनन मेरा चरित्र नहीं

उठाना कर्त्तव्य समझता हूँ

वैसे कपड़े कोई कुछ भी पहने

मुझे इससे क्या लेना देना

मैं खुद भी शौक़ीन हूँ


खाने-पहनने का

तारीफ़े तो हम आम तौर पर

दुश्मनों की भी कर देते हैं

पर साड़ी तुम्हें अखरती है

और हिज़ाब तुमने फटाक से अपना लिया।


वास्तविकता है या एजेंडा

तुम खुद फुर्सत में सोच लेना

एैसे खोखले नारीवाद को मेरा लाल सलाम

एैसे खोखले नारीवाद को मेरा लाल सलाम

आवाज़ उठाना सबको है।


सब स्वतंत्र है

फिर तुम्हारी आवाज़ शशक्तिकरण

और मेरी मैनस्प्लैन

तुम्हारा गाली देना उचित है

प्रगतिशीलता का प्रतीक है

अगर मेरे मुख से गलती से भी निकलीं

तो वह उत्पीड़न है


10 लड़कों से बात करने का तुम्हें अधिकार है

दूसरों की पिक पर लाइक भी कर दिया मैंने

उससे तुम्हें दिक्कत है

मैंने अगर एफ०बी० का पासवर्ड माँगा

तो कहो मुझे तुमपर विश्वास नहीं


और मेरे मोबाइल पर अक्सर

तुम्हारी तिरछी नज़र रहती है।

तालीम तराज़ू पर तोल लेना

यथार्थ का पलड़ा जरा माप लेना

एैसे खोखले नारीवाद को मेरा लाल सलाम है।


काम में बराबरी से पैसे मिलने का

अधिकार सबको है

काबिलियत के तौर पर

कहीं पर मिलता है कहीं पर नहीं

ये स्वत कंपनी के मालिक पर निर्भर करता है


अधिकतर भारत में तो कभी एैसा नहीं हुआ

बुरा अकेले तुम्हें ही नहीं बोला जाता

रंगभेद का रिजेक्शन हमनें भी झेला है

नाकाबिल, नालायक जैसे शब्दों से तकल्लुफ़

अक्सर हमारे घरवाले हमें करा देते हैं


हम उसे हँसकर इग्नोर कर देते हैं

एैसे खोखले नारीवाद को दिल से लाल सलाम

तुम मर्द हों हमारें नारीवाद पर तुम्हेँ बोलने का हक़ नहीं

तुमनें एक औरत का दर्द क्या होता है कभी झेला नहीं

क्यों मेरे घर पर क्या माँ नहीं


जिनके प्रगति के पथ पर हमे अग्रसर होना है

हाथ उठाना गलत है और उससे भी गलत है चीरहरण

एैसी प्रवृति का पुरुष मर्द नहीं होता

दस इलज़ाम लगे है झूठे हमपर

बीस और लगा देना


बाकी सही गलत का भेद तो हम बोलेंगे ही

क्योंकि हममे रीढ़ अभी बाकी है

जनता सब समझदार है

अगर देश को प्रगतिशील बनाना है तो

कंधे से कंधे मिलाकर चलना होगा।


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