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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy

कलम

कलम

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दया, प्रेम, शृंगार, विरह की,    

 कलम-कहानी लिखती है।


दंड-प्रक्रिया विधि-विधान की,

 निष्ठुर रानी बनती है।


कभी नहीं वह शरमाती है ,   

कभी नही वह है डरती।  


रहती निडर हमेशा वह भी,

आत्मा ज्ञानी बनती है।।


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