कलम
कलम
दया, प्रेम, शृंगार, विरह की,
कलम-कहानी लिखती है।
दंड-प्रक्रिया विधि-विधान की,
निष्ठुर रानी बनती है।
कभी नहीं वह शरमाती है ,
कभी नही वह है डरती।
रहती निडर हमेशा वह भी,
आत्मा ज्ञानी बनती है।।
दया, प्रेम, शृंगार, विरह की,
कलम-कहानी लिखती है।
दंड-प्रक्रिया विधि-विधान की,
निष्ठुर रानी बनती है।
कभी नहीं वह शरमाती है ,
कभी नही वह है डरती।
रहती निडर हमेशा वह भी,
आत्मा ज्ञानी बनती है।।