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Neena Ghai

Inspirational

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Neena Ghai

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कलम और ख्याल

कलम और ख्याल

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मन घबरा उठा था 

हर तरफ़ रेत ही रेत

न समझ आ रहा था

किस से कहूँ ये मन का भेद

कोई तो हो जिस से बैठ

कर लूं मन की दो बात

कोई तो हो जिस से बैठ

बाँट सकूँ मन का भार


ख्यालों में खोई थी अभी

पास रखी कलम मुस्करा

थी पड़ी

बोली, छोटी हूँ कद में पर

इतनी भी नहीं 

तेरा दर्द न समझ सकूँ

ऐ मेरी सखी

हाथ में मुझे उठा कलम तू

कर अपना मेरी सखी


हाले दिल सुना इस नोक

से लिख कर मेरी सखी

ख्यालों को ज़ुबान आज

दे दे मेरी सखी

ले चलती हूँ मैं तुझे एक

ऐसी दुनिया में

घबराहट का नामों निशान

भी नहीं है उस दुनिया में

पंख भी दूँगी, उड़ना सिखा दूँगी

खुद को जान लोगी अपनी

पहचान भी बना लोगी

इस दुनिया में l 


   


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