कल का युवा आपकी देन
कल का युवा आपकी देन
बच्चों के जन्म से युवावस्था तक
आते कई बदलाव हैं
बाल मनोविज्ञान हमें उन बद्लाओं को
समझने का देता ज्ञान है
नवजात शिशु का जन्म देता बहुत खुशी है
उसके जन्म से पाँच साल तक रंग दिखते हजार है।
बच्चों को जन्म देना एक बात हैं,
उनका पालन -पोषण,
आहार - व्यंवहार कैसा हो
इस बात पर ध्यान देना
सबसे जरूरी बात है।
बाल मनोविज्ञान कहता है बच्चों को समझो
कहाँ क्या दिक्कत आ रही है उसको जानो
बच्चा अपना है, माता -पिता से ज्यादा
उसे कौन समझ सकता है
मासूम बचपन माँगता है एक प्यार भरा साथ
हमारा समय एक अपनापन और ढ़ेर सारा संवाद
हम कैसा बर्ताव किसी से कर रहे है
वही देख हमारा बच्चा भी बड़ा होता है।
वही बच्चा जब युवा अवस्था में कदम रखता है
तब चिड़चिड़ा और अकेला रहना पसंद करता है
घर से ज्यादा उसे बाहर लोग अच्छे लगते है
दोस्तों के साथ घुमना पसंद करता है।।
तब हम माता पिता का फ़र्ज़ बनता है
अपना ओहदा छोड़ दोस्त बने
उसके साथ बैठे और समझने का प्रयास करे।
बच्चे पहले भी होते थे बच्चे अब भी है
अन्तर मालुम बस इतना है
पहले घर पे बुजुर्ग रह्ते थे
सब मिलजुल कर खाते पीते नाचते-गाते थे
बच्चों को सुनने-सुनाने वाले कान होते थे
एक अनुशासन होता था, जिम्मेदारी होती थी
बच्चों के लिये घर के अंदर ही
दुनियाँ प्यारी होती थी।
आज माहौल ही कुछ और है
बच्चे पैदा कर माता -पिता
अपने कार्यो में मशगूल हैं।
घर के बड़े बुजुर्ग आश्रम में है,
और बच्चे पल रहे आया के भरोसे है।
क्या माहौल मिला क्या परवरिश मिली
माता -पिता की जगह स्मार्ट फोन
और आया ने ले ली
अब खुद ही सोचो वो पौधा कैसे पन्पेगा
गल्तियां हमारी होती है,
फिर दोष किसी और को देते क्यो है ?
भागते है यहाँ- वहाँ,
पूछते हैं मनोवैज्ञानिक से
हमारे बच्चे हमें कुछ नहीं समझते
आखिर ऐसा करते है क्यों ?
हमनें तो कोई कमी न छोड़ी,
बच्चों की हर खवाहिश पूरी की
उनके लिये दिन रात मेहनत की,
उनके मुंह खोलने से पहले ही
हर चीज़ ला कर दे दी।
मनोविज्ञान भी यही कहता है,
आपसे ही बच्चों की दूनिया हैं
बच्चों को समझो उनको समय दो
वही आपके घर की धरोवर है।
जितना उनसे घुलोगे- मिलोगे
उतना वो तुम्हें चाहेगें।
एक शिशु को ऐसे पालो
उसको संस्कारो के आवरण में ढालो
वही देश का भविष्य हैं
उसके एक रोल मॉडल बनों,
जैसा बच्चे का स्वभाव चाहते हो
वैसे पहले खुद भी बन जाओ
और एक नये युग के निर्माण में योगदान करो।
