कइयेक आंखों का आंसू, मासूमों का प्राण ले लेते हैं
कइयेक आंखों का आंसू, मासूमों का प्राण ले लेते हैं
कइयो के आंखों का आंसू,
मासूमों का प्राण ले लेते हैं
लेकर नाम जाती का
एक मंच नेता होते हैं
हार जीत का फैसला
जात धर्म से करते हैं।
इलेक्शन आते ही कोर्ट
आरक्षण बढ़ाने जाते हैं
विभिन्न मुद्दों को उठाने
जोर जोर से लग जाते हैं।
आरक्षण का झांसा देकर
अपना पिट्ठू गर्म करते हैं
नेता मंत्री संतरी बन कर
जनमत को लताड़ते है।
सान सौंकत से लालबत्ती
गाड़ी पर घुमते रहते है
सरकारी लाभ
का फायदा
24 -24 घंटा उठाते हैं।
कइयेक आंखों का आंसू,
मासूमों का प्राण ले लेते हैं
तब जाकर यह नेता
नेता बन पाते हैं।
जितते ही जनमानस से
दुर दुर हो जाते हैं
पांच वर्ष के बाद यह
नया नया वादा ले आते हैं।
पक्का काम का हवाला
देकर भोट ले लेते हैं
चाहे कुछ भी हो जाएं
लौट कर देखने ना आते हैं।।
कइयों आंखों का आंसू,
मासूमों का प्राण ले लेते हैं
तब जाकर यह नेता
नेता बन पाते हैं।