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Akshat Shahi

Inspirational

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Akshat Shahi

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किवाड़

किवाड़

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जब किवाड़ खुलेंगे अब की बार 

तो कौन निकलेगा?

धुएँ की कई परतें लिए घर में घुसे थे साहब 

नहा लिया होगा तो बेटा या बाप निकलेगा, 

भूखा पेट जो घर का रास्ता ढूँढ रहा था 

इस बार बच्चों को घर छोड़ कर बाहर निकलेगा,

यकीनन वापिस आएँगे मज़दूर कारख़ाने में 

वैसे ही खड़ खड़ चलेंगी फिर ये मशीनें 

अब इंसानो को शायद इंसान का काम मिलेगा 

इन चिमनियों ने भी देखा लिया है नीला आसमान,

अब रोज़ रात को तारों में कोई ख़ास दिखेगा 

वो आज़ादी के गीत जो धरना दिए बैठे थे 

कल शाम आँगन में दुआ मांगते देखा उनको,

हुक्मरान ने भी दुआ में हाथ उठाए चुपचाप 

इस दफ़ा सड़कों पर बादस्तूर ऐतबार सुनेगा 

क़यामत से पहले का ख़्वाब है मासूम सा 

क्या पता कितना सच होगा या झूठ निकलेगा 

देखना तो ये है मुंतज़िर अकेली आँखो को 

जब किवाड़ खुलेंगे अब की बार 

तो कौन निकलेगा?

स्वस्थ निकलेगा 

या अब भी बीमार निकलेगा 

फिर कोई हिंदू मुसलमान निकलेगा 

या अब की बार इंसान निकलेगा। 


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