किस्मत
किस्मत
सबकी अपनी अपनी
किस्मत का फेर
नहीं होता
जिसका कोई मेल
पैसा ही बनता जिसका
सबसे बढ़ा आधार
नहीं होता जिसके पास
वो ही करता चाकरी हजार
क्या क्या जतन करता
एक एक पैसा कमाने के लिए
नहीं जिसका कोई पार
एक मजदूर सुबह से
निकलता रोटी लेकर चार
दिनभर करता मेहनत अपार
फिर भी पाता पैसे चार
क्या यही उसकी
किस्मत मे लगातार
क्यों नहीं उसकी
किस्मत मे पैसा हजार
एक बैठा बैठा
हुकुम चलाता
पाता वेतन पचास हजार
उसकी पत्नी घर मे
पलंग पे बैठी करती
दिन भर मेक अप बार बार
देती बाई को आर्डर ये
कर वो कर करती
नहीं खुद कुछ भी काम
करती बाई का
जीना हराम जब तक
ना करदे वो सारा काम
खुद करती अपने
मेक अप पे कई हजार
देती बाई को
कुछ कुल पैसा हजार
जो बनता बाई के
परिवार को पालने का आधार
क्या पैसा ही नहीं
किस्मत का आधार
एक पाता कड़ी मेहनत
मशक्कत करके
दूसरा पाता उसे
बैठे बैठे करके बेईमानी
,अनाचार, दुराचार
यही किस्मत एक को सौ
दूसरे को दिलाती कई हजार
नहीं जिसका कोई परावार।