किस्मत की लकीरें
किस्मत की लकीरें
किस्मत की लकीरों ने ही उलझा रखा है
वरना जमाने ने तो, क्या खूब तमाशा बना रखा है
खींच कर गलतफहमी की दीवार
लोगों को कितना दूर कर रखा है
बदल जायेगी तक़दीर भी
इसी बात से दिल को बहला रखा है
एक सूरज ही काफी नही रोशनी की खातिर
अंधेरे के लिए तो रब ने जुगनू भी बना रखा है
डर लगता है अब सिर्फ वक़्त के थप्पड़ो से
क्योंकि न जाने कब क्या खो जाए भरोसा कहा है।