किसी कोने में घर है उनका
किसी कोने में घर है उनका
गहरी सन्नाटे में भी रुनझुन सी बजती हैं यादें
मन गलीयों में यादोंं की गुमसुम चलती हैं बरातें
बीते लम्हों में आज भी बाकी मंजर है उनका
लगता है दिल के किसी कोने में घर है उनका
तड़पता है मिलता है आज भी मन उनके ख़ातिर
रात के सपनो में भी आज उनका है जागीर
शहर के आबोहवा में अब तो असर है उनका
लगता है दिल के किसी कोने में घर है उनका
मुस्कराते थे जिन पलों में आज वो आँसू घोलते हैं
तन्हाई में जब भी हम गुजरे वक्त के पन्ने खोलते हैं
बस कुछ पलों को संभालता हूँ जो धरोहर है उनका
लगता है दिल के किसी कोने में घर है उनका
ये माना आज भी आबाद है घर संसार अपना
आज मेरा सपना है कोई ,कल किसी का था मैं सपना
ख्वाब और हकीकत के समंदर में आज भी लहर है उनका
लगता है दिल के किसी कोने में घर है उनका
बुत बन देखता हूँ समय की प्रबल धारा को
एक ओर उजड़ीती दूसरी ओर आबाद होते नजारा को
गुजरे पलों को जोड़ता हूँ जो हमसर है उनका
लगता है दिल के किसी कोने में घर है उनका।

