किसान
किसान


माथे पर बूंदे श्रमकण की,
हाथों में ताकत जीवन की
लहराते खेतों के सपने
बोझ तले बढ़ते ऋण की।
सिर पर टूटी-फूटी छत है
नीचे छांव गरीबी की।
हल औ बैल जमा पूंजी है
खाते हैं रूखी - सूखी।
कमियों में भी आस न छोड़ें
परवाह नहीं है उलझन की
लहराते खेतों के सपनें - - - - -
अपना भाग्य स्वंय लिखते हैं
मेहनत से न घबराते।
स्वेद छिड़क माटी के उर में
धरा को स्वर्ग बना देते।
अंकुर लगते मोती जैसे
बाली लगतीं कंचन सी
लहराते खेतों के सपनें - - - - -
चाहे तपती दुपहरिया हो
चाहे गिरता पाला हो।
आंधी - तूफान घिरा हो
या पानी आने वाला हो।
हर मौसम में खेत संवारें
करते रक्षा बच्चों की सी
लहराते खेतों के सपनें
बोझ तले बढ़ते ऋण की।