किसान की दुर्दशा
किसान की दुर्दशा
किसान बेचारा, है किस्मत का मारा,सभी का अन्नदाता है कहलाता,
रात दिन हॉड तोड़ मेहनत हैै करता,सभी मौसम में खेती में कार्य है करता,
पूरे वर्ष फसल में कार्य है करता,फसल भी बोने के लिए उधार है लेता,
सभी के लिए खाने को अनाज है उगाता,फिर भी कभी कभी स्वम भूखा सो है जाता,
फसल को उगाने के लिए प्रतिदिन गुड़ाई, खाद,
पानी फसल को है देता,फिर फसल के तैयार होने की इंतजार है करता,
फसल के कटने के समय कभी बारिश,कभी बाढ़,
कभी सूखा कभी तूफान और कभी ओले फसल को नस्ट कर है देते,
वह बेचारा किस्मत का मारा किसान अपनी बर्बादी अपनी आंखों के सामने देखता है जाता,
फसल यदि कट भी जाय तो बिचोलियों को अपनी फसल ओने पोने दाम में बेचने को मजबूर होता है जाता,
फसल से जो पैसे मिलते उससे वह अपना उधार है चुकाता,
सारे दिन रात मेहनत करने के बावजूद न तो अपने बच्चो को अच्छा पढ़ाने के पैसे है होते,
न ही अपने बच्चो को अच्छे कपडे व अच्छा खाना खिलाने के पैसे होते,
जैसे तैसे सादा जीवन जीने को मजबूर है होता,
बेटी की शादी करनी हो तो भी जमीन बेचने को मजबूर है होता,
कभी गंभीर बीमार हो जाय तो भी जमीन बेचने को मजबूर है होता,
किसान बेचारा है किस्मत का मारा,सभी का अन्नदाता है कहलाता!
