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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

Abstract

की मैंने हारना सीखा नहीं है

की मैंने हारना सीखा नहीं है

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जाकर ज़िन्दगी से कह दो कि,

मैंने हारना सीखा नहीं है।

निज सम्मान स्वाभिमान को,

यूं मारना सीखा नहीं है।


जाकर कह दो कोई वक्त से,

भरे ना दम्भ अपनी जीत पर।

कि मैंने वक्त और हालात पर,

ठहर जाना अभी सीखा नहीं है।


ये माना मैं कठिन पथ पर कहीं,

भटकती ढूंढती राहें नयी।

तूफान में नैया फंसी है और,

सामने अवरोध कई।


जाकर रास्तों से कह दो,

कि डाले अवरोध कितने राह में।

मुझमें हिम्मत बाकी अभी है,

भागना सीखा नहीं है।


जाकर ज़िन्दगी से कह दो,

कि मैंने हारना सीखा नहीं है।


ये माना रास्तों में मैं कहीं,

कुछ लड़खड़ाती गिर रही हूँ।

हार के इस वार से,

कमज़ोर थोड़ी पड़ रही हूँ।


जाकर वक्त से कह दो,

गिरा ले वो मुझे चाहे अभी।

मैं उठूंगी एक दिन ,

डर पालना सीखा नहीं है।


जाकर ज़िन्दगी से कह दो,

कि मैंने हारना सीखा नहीं है।


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