ख्वाहिशों के पंख
ख्वाहिशों के पंख
अजीब दास्तां हैं इस मानव जीवन की
जेब खाली है पर ख्वाहिशें बेहिसाब हैं।
फटे हाल सी जिन्दगी है पर छूना आसमां है
घर खड़ी है एक साइकिल
पर मन में तो लगे पँख हजार हैं।
उम्मीद है,उमंग है,चाहत है,अरमान है,
एक न एक छूना तो आसमान हैं।
साइकिल नहीं दिल का टुकड़ा है।
यही मेरे ख्वाहिशें का बाजार और
यही मेरे ख्वाहिशों का खरीददार है।
माना अभी कुछ नहीं मेरे हाथ है
पर इन हाथोंं से उकेरे कई रंग हैं।
समय,स्थिति,समझ तक मेरी होगी,
ये पंख दीवारों पर नहीं,सफलता में होंगे।
