ख्वाब
ख्वाब
एक प्यास जो उठी है, मैं उसे बुझाना चाहता हूँ
तैराक तो नहीं मैं, पर समुंदर में जाना चाहता हूं
गहराइयों का अब मुझे, कोई खौफ न रहा
लहरों में ही बहकर सही, साहिल मैं पाना चाहता हूँ
काफी करीब आ चुका हूं, मंज़िल के अब मेरी
लौटकर मैं अब नहीं, खुद को हराना चाहता हूं
ज्यादा से ज्यादा होगा यही, कि मैं डूब जाऊँगा
अब ख्वाब हो पूरे, या खुद को मिटाना चाहता हूं