खुशियों से सजी यादों की बारात
खुशियों से सजी यादों की बारात
खुशियों से सजी यादों की बारात
प्रस्तावना:
यह कविता मेरे बेटे की शादी के अवसर पर लिखी गई है। इसमें उस समय घर में बिखरी रौनक, शहनाइयों की गूँज, मेहमानों का उत्साह और बहू के आगमन से घर में आई रोशनी का भाव समेटा गया है।
शादी का घर, रौनक से भरा,
शहनाइयों का मधुर सुर खिला।
गीत-संगीत से गूँजे आंगन,
हर कोना बना आनंद का भवन।
रसोई से उठती व्यंजनों की महक,
मन में जगाती स्वाद की ललक।
रस्मों की रौनक, हंसी की झंकार,
खुशियों से दमकते चेहरे हजार।
गणपति की पूजा, मंगल प्रकाश,
कल की बारात की प्यारी आस।
पाँच दिनों तक चला उत्सव महान,
हर पल में छलका सुख का गान।
जब बहू आई तो रोशन हुआ द्वार,
घर भर उठा जैसे त्यौहार।
समय सुहाना, खुशियों का खजाना,
शादी का घर बना सपनों का ठिकाना।
“शादी का घर केवल रस्मों और गीतों का संगम नहीं, बल्कि वह मधुर स्मृति है जो जीवनभर दिलों को रौशन करती
रहती है।”
स्व रचित कविता
