ख़ुदकुशी
ख़ुदकुशी
उलझन में अपने शख्स वो उलझा हुआ होगा।
ग़म के भंवर में किस क़दर डूबा हुआ होगा।
यूं ही नहीं करता कोई इस तरह खुदकुशी-
हद तक दिलो-दिमाग से टूटा हुआ होगा।
मरने से पहले सोचा उसने सौ दफा होगा।
ग़म के सफ़र में ढूंढ़ा उसने रास्ता होगा।
ढूंढे से भी मिला नहीं जब कोई भी उपाय-
तो हार कर के मौत को ही चुन लिया होगा।
ऐसा नहीं कि जीना कोई चाहता नहीं।
रस ज़िन्दगी का पीना कोई चाहता नहीं।
कोई तो किये रहता है समझौता दर्द से-
और चाक जिगर सीना कोई चाहता नहीं।
