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Ajay Prasad

Drama

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Ajay Prasad

Drama

खुद को सज़ा देता हूँ

खुद को सज़ा देता हूँ

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रह कर खामोश खुद को सज़ा देता हूँ

बेहद गुस्से में तो बस मुस्कुरा देता हूँ।


सब नाराज़ हो कर क्यों जुदा है मुझसे ?

कहते हैं लोग मै आईना दिखा देता हूँ।


क्यूँ बंचित रह गया उनके नफरत से भी

अक़्सर ये सोच कर आँसू बहा देता हूँ।


फूलों की अब नही है चाह मुझको यारों

काँटों से भी अब रिश्ते मै निभा देता हूँ।


मिल जाए आसरा भी ज़रा रातों को

अक़्सर शाम होते ही दीया बुझा देता हूँ।


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