खताएं
खताएं
खताएं गिनाईं नहीं जाती कुछ रिश्तों में
निभाना है जिन्हें रिवायत से बने उसूलों से
मुहब्बत पाक होती है जिन रूहों में
अहमियत नहीं होती खता की उन रिश्तों में
रह गई गर कसक फिर भी दिल में
न था कोई हल उन रंजिशों का
फ़िजूल है याद कर उनका हिसाब करना
बे माने है उन को गिना कर रिश्ते को शर्मसार करना!
