खोया हुआ खत
खोया हुआ खत
उन्मुक्त विचारों में खामोशी क्यों आ गया
अनजाने भय, मुरख की कल्पना छा गया
कल्पनाओ को अंधेरे में सूरत न दे पाया
द्वंद भरी विचारों का रूप न गढ पाया।
जिन्दगी के सफर में सफर करता रह गया
लिखा था जो खत, भेजा न गया
उलझनों ने शिरकत की, मन में खामोशी आ गया
सिर्फ वह एक प्यास थी गढ़ने-मढ़ने की।
रूप जिसका बिखर गया
ढूँढता हूँ मैं ढूँढता है ये मन
तलाशते रह गए नयन
पर मिला न कहीं वह खत
वे शब्द वे प्यार भरे दास्तान।
खोल न पाया उसने
लिखा था जिसके लिए
भेजा न जा सका आज तक
वो दिल का प्यार, मन की प्यास।
जीवन की खामोशी, नयनों की बैचेनी
खामोश रह गया आज तक
लिखा था जो खत, भेजा न गया।