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Dr Lakshman Jha "Parimal"

Inspirational

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Dr Lakshman Jha "Parimal"

Inspirational

“ खो गया अपनापन “

“ खो गया अपनापन “

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कभी मैं सोचता हूँ,

कि उनसे बात करूँ !

कभी मैं सोचता हूँ,

कि कुछ उनको लिखूँ !!


पर ठिठक जाता हूँ,

कहीं बुरा ना लगे !

लिखने से डरता हूँ,

जबाव भी ना मिले !!


जब साधन नहीं थे,

हम सब तरसते थे !

लोगों के टेलीफोन,

का इंतजार करते थे !!


अब नेट का जमाना,

आके फैल गया है !

सबके हाथों में यह,

यंत्र मिल गया है !!


फिर भी हम लोग,

बात करते नहीं हैं !

उनके दुख दर्द को,

कभी समझते नहीं हैं !!


दोस्त भी मैंने काफी,

फेसबुक में बना रखा है !

पर उनसे भी बातें कहाँ,

फोटो ही सजा रखा है !!


सब अपनी धुन में हैं,

किसी की परवाह नहीं !

मैं उन्हें कुछ भी लिखूँ,

उन्हें लिखने की चाह नहीं !!


यह रोग चारों तरफ,

करोना बन गया है !

अपने पड़ोस में भी,

ओमीक्रॉन फैल गया है !!


निमंत्रण आमंत्रण को,

व्हाट्सप्प कर देते हैं !

सहयोग आत्मीयता को,

हमलोग खो देते हैं !!


प्यार अपनापन हमें,

आजन्म तक मिलता नहीं !

उजड़े हुए वीरान में,

फूल आत्मीयता का खिलता नहीं !!



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