खंडहर की भी अपनी कहानी है
खंडहर की भी अपनी कहानी है
खंडहर की भी अपनी कहानी है,
देखा है इसने सभ्यता को
बनते,
बिगड़ते,
खत्म होते,
गूंजी हैं यहाँ असंख्य
किलकारियां,
ठहाके,
रुदन
और चीखें,
सजी हैं यहाँ तमाम
डोलियां,
सेहरे
और अर्थियां,
गवाह है ये अनेक
किस्सों का,
कहानियों का।
रहा था कभी शान इसका भी,
झाड़ - फानूस से लदा हुआ,
संगमरमर से सजा हुआ,
दरबारियों से भरा हुआ,
रोशनी से जगमगाता हुआ,
घुंघरुओं से छनछनाता हुआ,
गीत गाता हुआ,
संगीत सुनाता हुआ।
अब ये वीरान है,
धूल गर्दे से भरा है,
अंधकार में डूबा है,
फिर भी ...
आज ये देता है पनाह-
प्रेमियों को,
पागलों को,
राहगीरों को,
चोरों को,
पशुओं को,
पक्षियों को।
कितना दिया है,
कितना दे रहा है
और ना जाने कितना देगा?
बनाने वाले इसे भूल गये,
पर ये ना भूला,
जबसे बना है,
बस दे ही रहा है ,
बिना रुके बिना थके।
मिट जायेगा एक दिन,
ये अंतिम अवशेष भी दब जायेंगे,
ज़मींदोज़ होकर भी
छोड़ जायेगा कुछ निशानियाँ,
जिसे खोज निकालेगी कोई नई सभ्यता,
लिखी जायेंगी फिर से किताबें,
गढ़ी जायेंगी फिर से कहानियाँ,
नई कहानियाँ!
"खंडहर की भी अपनी कहानी है।"
