खिलौना
खिलौना
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बचपन में
मिट्टी के खिलौनों से
बहुत खेलती थी मैं।
कभी कभी गुस्से में
फेंक देती थी।
और टूट जाता था
बेचारा खिलौना!
आज ज़िन्दगी ने
खिलौना समझ रखा है।
ज़ोर ज़ोर से
उठा पटक करती है।
समझती ही नहीं
कि माटी का खिलौना है
टूट जाएगा!