STORYMIRROR

Ruchika Rai

Abstract

4  

Ruchika Rai

Abstract

ख़्वाब

ख़्वाब

1 min
272


कुछ ख़्वाब हमने बुने थे,

कुछ कहे ,अनकहे सिलसिले थे,

कुछ पूरे होकर दिल को सुकून पहुँचा गए,

कुछ बेचैनियों में डूबे हुए थे।


कुछ ख़्वाब मेरे जगती आँखों ने देखा था,

नहीं कर सकते जिनको अनदेखा सा।

कुछ ख़्वाब उनींदी पलकों पर आये,

दिल में अधूरेपन की कसक छोड़ जाएं।


ख़्वाब यह नहीं की बड़ा नाम यश पाऊँ,

ख़्वाब यह भी नहीं की जमीन छोड़ गगन की

बुलंदियों को पाऊँ।

ख़्वाब बस इतना सा मन में है कि 

अपनों का साथ और परायों से भी अपनापन पाऊँ।


ख़्वाब यह है कि दर्द में मैं मुसकुराऊँ,

ख़्वाब यह भी की उदासी में गीत गुनगुनाऊँ,

ख़्वाब बस इतना कि किसी के होंठों पर मुस्कान

सजाने को

कोई न कोई मैं बहाने ढूंढूँ।


ख़्वाब यह कि मैं किसी के खुशी का कारण बन जाऊँ,

ख़्वाब यह भी की किसी के हौसलों की वजह बन जाऊँ,

ख़्वाब ज्यादा नहीं बस इतना सा ही है मेरा,

बुझते हौसलों की प्रेरणा बन उनके अंदर जोश जगाऊँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract