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Richa Richa

Abstract

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Richa Richa

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खेल बचपन का

खेल बचपन का

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हैं बूँद बूँद में सागर छलका

मन हो रहा कुछ यूँ हल्का

बच्चों की इस धूप-खेल में

फिर मैंने देखा वो पल बचपन का...


बंद आँखों की हँसी और

बंद हाथों से बह उठा श्रोत खुशी-का

यूँ लगा कि कह रहे हों

जीवन खेल हैं, बस इसी समय का...


क्या खेल हैं बच्चों-सा ये अजब अनोखा

ना हो रहा किसी समय का आभास

भूल के सारी समय परिस्थिति

ना हो रहा अब वर्तमान से न्यास...


इक-दूजे पर कर रहे बारिश

जैसे कृष्ण संग सुदामा का हो परिहास

हैं जीवन का बस सार यहीं अब

ना करो बचपन को उदास.....।


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