यादों की आजादी
यादों की आजादी
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तेरी यादों ने रिहा करके
भी आजादी नहीं बख्शी,
मुजरिम की तरह मेरे ही
कमरे में कैद कर रखा..
ये यादों की गुल्लक हैं जनाब
जो आजाद कर दोगे खुद को
तो बस हाथ ही मलते रह जाओगे ,
असलियत में तो गुल्लक की कीमत
का पता तो टूटने के बाद ही होता है
फिर ना कहना क्यूँ रिहा कर दिया खुद से खुदी को,
जो यादें ही ना हो जिंदगी में और क्या रखा है
खुशी तो है कैद में ही सही, बस यादों के साथ तो रखा है।