कहाँ से आ गये
कहाँ से आ गये
कहाँ से आ गये
इस पृथ्वी पर नहीं मालूम
कहाँ हैं नहीं मालूम
कहाँ जाना है ये भी नहीं मालूम।
फिर भी चलते जा रहे हैं
चलते चले जा रहे थे
अचानक एक दिन ठहर गये
सोचने के लिये कि
कहाँ जाना है।
और हैं अभी कहाँ
यकीन मानिये वख्त ठहर गया
हमने पाया अपना होना
चलने में भी और
ठहरने में भी
ठहरकर कुछ सोचने में भी
और जैसे हैं।
ठीक ठीक वैसा ही
महसूस करने में भी
और जाना हर कदम एक मंजिल है
सफर तो कब का खत्म हो चुका है।
हम मन्जिल पर ठहरकर
प्रतीक्षा रत है
किसी प्रेमी के
अपने एक अदृश्य मित्र के साथ
आनन्द लेते हुये।
