कहाँ जी रहा हूँ
कहाँ जी रहा हूँ


कहाँ जी रहा हूँ तन्हाइयों में
तुम छोड़ जुदा हो गये
कहते थे प्रियतम अपना,
वो रिश्ते नाते भूल गये
क्या कमी थी जिन्दगी में,
हमारी मोहब्बत की
तुम क्यों छोड़ हमें जुदा हो गये
कहाँ जुदा हो गये
ना खबर थी तुम्हारी हमें कहाँ हो,
जिस दिन किसी गैर के हो गये
तुम्हे चाहत थी इतनी हम से मेरे गालिब
फिर भी क्यों छोड़ जुदा हो गये
कहाँ जुदा हो गये
आ रहा हूँ तुम्हारी नगरी में
फिर दिखो कहाँ खो गये
हमसे मिलने की चाहत
होती थी तुम्हे पहले
फिर क्यों अब मुलाकात अधूरी छोड़ गये
कहाँ जी जुदा हो गये