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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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खामोशी

खामोशी

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तुम इतनी खामोश क्यों हो ?

तुम चुप जो रहती हो

लगता हैं एकाकी सा

तुम्हारी खामोशी से


अब पुष्प भी मुरझाएंगे

आवाज मेरी खो जाती है

सूनापन आ जाता है

उदास मैं हो जाता हूँ


इतनी शांत सी क्यों हो

फिर उदास सी क्यों हो

अपने गम को बांट दो

खामोशी की देहरी लांघ दो


कम होता है दर्द बांटने से

आपस में घुल मिलने से

ख़ामोशी को आज़ाद करो

खुद को न कब परेशान करो


जुड़े हैं तुम्हारी मुस्कान से

एक अदद हंसी से

हमको भी अब हंसने दो।


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