खामोश रहे हम
खामोश रहे हम
सामने उन्हें देख कर भी खामोश रहे हम
कुछ कहें या चुप रहें ये सोचते रहे हम
मसरूफ़ियत में उनकी न कोई ख़लल आए
इस फ़िक्र में उनकी हर लम्हा घुलते रहे हम
यूँ तो मयस्सर थे वो सारे ज़माने को
हुआ न वक़्त अपने लिए ये देखते रहे हम
दिल मचला और मचलता रहा उनके दीदार को
अपने भी हैं वो ज़रा से ये भरम पालते रहे हम
मुख़ातिब थे वो दुनिया से हँस कर बात करते थे
होगी इस ओर नज़रे करम राह ताकते रहे हम
वो आए थे महफ़िल में और रुखसत भी हो गए
मंज़र उनके जाने का बेबस देखते रहे हम
दिल टूटा अपना लब से न इक आह तक निकली
खामोश सिसकियों का शोर सुनते रहे हम
हुईं अश्कियाँ सी आँखें मगर जाहिर न कुछ किया
दोस्तों से खामख्वाह नज़र चुराते रहे हम।