Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Ekta Purohit

Tragedy

4  

Ekta Purohit

Tragedy

खामोश मन

खामोश मन

1 min
557


कई दिनों से मन उदास है,

ना जाने क्यूँ जिंदगी से इतना हताश है,

कर तो रही हूँ जो करना चाहती हूँ 

ना जाने फिर भी क्यू इतना निराश है।


निकल पड़ती हूँ रोज खुद की ही

चुनी हुई राहों पे,

मगर दिल को किसी ओर ही 

मंजिल की तलाश है।

पता नहीं क्यूँ ये मन उदास है।


अकेली ही चल रही हूँ इन

अंजान राहों पर ना कोई हम राही

ना ही कोई साथ है, चली जा रही हूँ

क्यूँकि मंंजिल पाने की बेइंतहा प्यास है।


यूँ तो बहुत मजबूत हो गयी हूूँ 

इतनी ठोकरें खाकर पर अपनों के और

सितम अब ना इस दिल को ना बर्दाश्त है

शायद इसी लिए आज ये दिल उदास है। 


सबको मानकर अपना करता था

सब पर भरोसा इसीलिए शायद

आज दिल का ये हाल है शायद

इसीलिए आज ये दिल उदास है। 


इस खामोश मन को कैसे फिर से हँसाएँ,

जो दे सके इसको सुकून उसी

खामोश मन की तलाश है,

ना जाने क्यूँ आज ये दिल उदास है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy