Disha Singh

Abstract Children Stories Classics

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Disha Singh

Abstract Children Stories Classics

"केतुंगा की सादगी"

"केतुंगा की सादगी"

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कोई तुलना नहीं हैं

इस जगह की                           

बसा हैं तू मेरे कण - कण में          

खोया हूँ मैं 

तेरी खूबसूरत वादियों में


बैठा हूँ किनारें कमल के तालाब में

संवाहक ये कच्ची सड़क

ले जाये मुझें तेरे उपागम की ओर  

पहाड़ों की हरियाली

मनमोहन कर देने वाली

सावन में धान की सिंचाई


और नदी का वो ठंडा पानी

कोयल की कुहू चहक

पलाश फूलों की हल्की महक

फुटबॉल ग्राउंड की वो यादें

हाईस्कूल जाने की मुरादें


झाल मुरी का तीखापन

गांव में बीता है लचीला बचपन

बामनी का वो हाट बाज़ार हो या 

टुसु मेला की तैयारी

खेलाई चंडी जाने की होती थी


यारों के संग अपनी सवारी 

काश फूल की मझधार

दुर्गा पूजा की धुनुची ढाक

गर्मी छुट्टी में परिवार का साथ

मिल - बांट के खाने का स्वाद


हँसता-गाता वो आँगन

बारिश की बूंदों का सावन

आम बग़ीचे में घूमते चरवाहे

दौड़-भाग खेल खेलते पुराने

हल्की हवा की मदहोशी

सुकून मन की ताज़गी


 कृतज्ञ रहूँगा हमेशा मैं 

"केतुंगा"तेरे इस उपहार का

संग तू रहेगा सदा

बन के दिलों में एक एहसास सा

मिलती रहती है मुझें 

तेरी झलक गुज़रे हुये गलियारों से 

लौटना चाहता हूँ मैं फ़िर से

वहीं घर के चार दीवारों में।


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