कड़वा सच
कड़वा सच
बात है कड़वी पर सच है
हर कोई समझता अपने आप को परिपूर्ण है।
बात मेरी या आपकी नहीं
ये सांसारिक विचार है जो छाया हर जगह है।
थोड़ा कड़वा जो बोल दे जन्म देने वाले माँ बाप
लगता दुश्मन जग में उनसे बडा ना कोई है।
वक़्त का कड़वापन ला खड़ा करेगा तुम्हें उसी मुक़ाम पर
जहाँ आज खड़े तुम्हारे माँ बाप है
बात है छोटी बस समझ का फ़र्क़ है।
करेला हो या नीम, गुण है एक समान दोनो के
कड़वे है दोनो मगर सेहत के लिए अच्छे है।
बात इतनी समझनी है हम सबको
कभी कड़वे लगने वाले माँ बाप भी
ना आपका कभी बुरा सोचेंगे और ना करेंगे।
अक्सर कड़वा बोलने वाले ग़लत नही होते
होती है दवाइयाँ भी कड़वी मगर ज़रूरत में खाते सब है।
कड़वी लगती है कौवे की बोली
मगर श्राद्धों में ढूँढा उन्ही को जाता है।
बात है कड़वी पर सच है
अकेलेपन का कड़वापन सह रहे यहाँ सभी हैं
ना उम्र देखीं है ना औहदा,बस कर लेता अपने वश में।
रुख़ जो करो कभी अपनो की तरफ़
तो दिल साफ़ करके जाना, फिर देखना
ना कोई गिला रहेगी ना कड़वापन रिश्तों में
बात है छोटी बस समझ का फ़र्क़ है।
देखो तो चाँद बहुत दरहै और समझो तो
सारे तारे है झोली में
बात है कड़वी पर सच है।