STORYMIRROR

Neelam Chawla

Abstract

3  

Neelam Chawla

Abstract

कच्ची दीवाल

कच्ची दीवाल

1 min
240

हमने कई गड्डे खोदें

हमने कई जाल बिछाए

काँटे भी 

और भाले भी


हम हो सकते थे

चूना और गारा

बना सकते थे

मजबूत दिवाल 

पर हमने दिवारे

खडी की 

कच्ची मिट्टी की 

हाथों से, हाथों के बीच 


हर हाथ ने 

अपना ईश्वर छोड़ा उस दीवार पर

खामोश ईश्वर 

जो हिलता भी नहीं

सांसें नहीं

नज़रों में भी हरकत नहीं 

ना ही कभी वो 

चिखना चिल्लाना करता है 

बचाने की उम्मीद से


 हमने जकड़ दिया

डाल दी जंजीरें 

उसे कहा ,"उस ओर दूसरे धर्म के लोग हैं

तू न जाना वहां

तू सिर्फ मेरा है"

रक्षा कवच बन गए 

कच्ची दीवार वाले 


हमने छोटी छोटी मेड़े बनाई 

पानी को बहाव पर धर्म 

लिख दिया

हमने संस्कृति बुनी

फिर अपनी ही रचनाओं पर 

लड़ लिया


हमने अन्न बोया 

ज़मीनो में 

जमीनो ने सीना फाड़ दिया

बिना जाने ईश्वर 


पेट ने भी एक बात न मानी 

उसने भी वही रोटी मांगी

जो पड़ोसी खाते हैं

"पर वो तो दूसरे धर्म की है"

बस एक यही अंग है जो 

नहीं समझता, धर्म

भूख में


मैं और वो एक और एक 

ग्यारह हो सकते हैं

पर हम है बस दो

कच्ची दीवाल 

पक्की सी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract