कभी ऐसा लगा
कभी ऐसा लगा
कभी ऐसा लगा नहीं कि
ये जो मुश्किलों का आलम है
ये जो नफरत का व्यापार है
ये जो पाखण्ड का अभिनय है
सबका सब
परिवर्तन के अग्निकुंड में
स्वाहा नहीं होगा।
यह जरूर है कि
इस सम्भावना में
जीवन के प्रति तुम्हारा मोह
बहुत नाजुक है,
होना भी चाहिये
जीवन है तो सम्भावना है।
फिर भी उम्मीद कोई चीज है
और जरूरत की बेचैनी
नये नये गुल खिला रही है।
