Dipti Sharma

Tragedy Others

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Dipti Sharma

Tragedy Others

कब तलक--

कब तलक--

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कभी जलाई कभी मार दी जाती।

लूट अस्मिता तिरस्कार दी जाती।


क्या है मेरी पहचान जरा बताओ।

ये बेरूखी मुझसे सही नहीं जाती।


रोती, तड़पती खुद को बचाने हेतु।

फिर भी अस्मिता उतार दी जाती।


नारी होना ही है आज अभिशाप।

ये बात हर पल मुझे बताई जाती।


जब खुद के लोग ही धोखा देते।

आबरू सुरक्षित रह नहीं जाती।


बने सब अंधे औ बहरे आज यहाँ।

मेरी तड़प क्यों नहीं दिखाई जाती।


उम्र का नहीं करते कोई हिसाब।

मासूम बच्चियाँ तक नोची जाती।


न जाने कहाँ खो गयी इंसानियत। 

वहशियों द्वारा बेटियाँ रौंदी जाती।


चीखती चिल्लाती जोड़ती हाथ भी,

दबा के मुंह बेटियां नोची ली जाती। 

 

आखिर कब तलक डर के जीयेंगे।

असहनीय पीर अब नहीं सही जाती।



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