STORYMIRROR

Dipti Sharma

Abstract

4  

Dipti Sharma

Abstract

बैरी चाँद

बैरी चाँद

1 min
279


क्यूँ जलते हो चाँद देख मेरे प्रियतम को।

तेरी चाँदनी भी तो हर लेती हर तम को।।


माना करवा चौथ पर करती तेरा दीदार।

तेरे हर रुप में देखती हूँ मैं मेरे सनम को।


निर्मोही चाँद कभी दिखे कभी छुप जाये।

चाँद तेरा साथ सँवारें हर एक जनम को।


कभी चाँदनी लाता कभी मावस की रात।

बैरी चाँद हरपल नयी राह दिखाये हमको।


अँधेरे में भी रौशनी की उम्मीद है जगाता।

दीप,कोई भी समझे ना चाँद के मरम को।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract