बैरी चाँद
बैरी चाँद
क्यूँ जलते हो चाँद देख मेरे प्रियतम को।
तेरी चाँदनी भी तो हर लेती हर तम को।।
माना करवा चौथ पर करती तेरा दीदार।
तेरे हर रुप में देखती हूँ मैं मेरे सनम को।
निर्मोही चाँद कभी दिखे कभी छुप जाये।
चाँद तेरा साथ सँवारें हर एक जनम को।
कभी चाँदनी लाता कभी मावस की रात।
बैरी चाँद हरपल नयी राह दिखाये हमको।
अँधेरे में भी रौशनी की उम्मीद है जगाता।
दीप,कोई भी समझे ना चाँद के मरम को।