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Dipti Sharma

Tragedy

3  

Dipti Sharma

Tragedy

सीता का भाग्य

सीता का भाग्य

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हा विधना ने क्या लेख लिखा, भई शोकाकुल सभा,

पतित पावनी सीता मुख से, उड़ गयी देखो प्रभा।।


सीता के  भाग्य से ही सदा,  है भगवान खेलते।

उसकी तकलीफ देख कर नित, मुंह अपना फेरते।।


खत्म हुआ था वनवास अभी, फिर से वनवास मिला।

अभी-अभी आई बहार थी , मुरझा गया मुख खिला।


सीता की करुण दशा देखो, सबको नित तड़पाती।

पर, वैदेही  मुसीबतों से,  कभी नहीं घबराती।।


दुख से मन को भारी करके, वैदेही निकल पड़ी। 

काल कोस रहा है अब तलक, ऐसी मनहूस घड़ी। 


जंगल  के बीच चुपचाप ही, सीता को छोड़े हैं।

राम सीता नाम रटे सदा, फिर क्यूँ मुख मोड़े हैं।।



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