कैसी ये हयात हैं
कैसी ये हयात हैं
जिसे पाने के लिए तड़पा
तनहाई में मजबूर हुआ !
उससे दूर हुआ !
थाम लेता हूं आंसू अपने
बस देखता हूं उसके ही सपने
मैंने उसपल की जुदाई,
क्यूं रोक नहीं पाई...
बस उलझन ही रहता पल- पल
ख़्वाब को समझता हूं दर्पण..
उसका ही चेहरा दिखाई पड़ता हैं।
कब वो अपना कहेगी !
मेरे सम्मुख आएगी !
मुझसे बातें करेगी !
कुछ सोचकर मेरा दिल रो पड़ता..
वो क्यूं अलग हुई मुझसे
मैं उसके इन्तजार में हूं कबसे
इतना भी ज़िक्र नहीं...
मेरे लिए...
मैं उसके लिए सब कुछ किया
अपना दिल तोड़कर बिखेर दिया
कैसी ये हयात....!!

