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Seema Singhal

Inspirational

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Seema Singhal

Inspirational

कैसे डिग सकता है मेरा मैं ?

कैसे डिग सकता है मेरा मैं ?

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‘मैं’ एक स्‍तंभ भावनाओं का

जिसमें भरा है

कूट-कूट कर जीवन का अनुभव

जर्रे- जर्रे में श्रम का पसीना

अविचल औ’ अडिग रहा

हर परीस्थिति में मेरा विश्‍वास

फिर भी परखता कोई

मेरे ही ‘मैं’ को कसौटियों पर जब

लगता छल हो रहा है

मेरे ही ‘मैं’ के साथ !

तपस्‍वी नहीं था कोई मेरा ‘मैं’

पर फिर भी बुनियाद था

अपने ही आपका ‘मैं’

एक मान का दिया ‘मैं’

सम्‍मान की बाती संग

हर बार तम से लड़ता रहा

परछाईं मेरे ‘मैं’ की बनता जब उजाला

मिट जाता अँधकार जीवन का सारा !!

एक चट्टान था मेरा ‘मैं’

जिसको टुकड़ों में तब्‍दील करना

मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं था

हथेलियों में उभरेंगे छाले

ये सोचकर वार करना

मैं तूफानों के वार में था अडिग

जल की धार से पाया मेरे मैं ने संबल

सोचकर तुम बतलाओ

कैसे डिग सकता है मेरा ‘मैं’ ?


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