माँ कवच की तरह
माँ कवच की तरह
मैं सोचती हूँ माँ कवच की तरह
मेरे साथ क्यूँ चलती है,
वजहें बहुत सारी हैं
बहुत स्पष्ट तरीका होता है उनका,
हर बात को कहने का
अपनी बात को स्पष्ट करने में
कभी क्रोध में भी होती हैं जब कभी
तो सामने वाले के सम्मान का
पूरा ध्यान रहता है उन्हें, उनके इन सदगुणों ने
मेरे कई रास्तों के अंधकार को हर लिया
माँ के नाम का कवच
मुश्किल पलों में हौसला होता है तो
निराशा के पलों में उम्मीद भी जो
हार के पलों में बन जाता है जीत भी
सम्भावनाओं की उँगली तो
विश्वास का आँचल भी
जब दूर हो माँ से तो उनके
शब्दों की विरासत मेरे नाम
यूँ भी होती है
तुम और तुम्हारी निष्ठा
मेरे लिये सम्मान है
पर तुम्हें इन सबसे पार पाना होगा
मैं तुम्हारी हूँ
तुम्हें मुझसे कोई छीनेगा नहीं
ना कोई बीच में आएगा
जिन्दगी को जीना सीखो
मीठे बोल बोलो
जहां भी रहो पूरी तन्मयता से
जो भी करो दिल से
जो रिश्ता तुम्हें मान दे उसे तुम
बस सम्मान दो !