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बसंती पर्व कहलाऊंगा

बसंती पर्व कहलाऊंगा

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बसंत पंचमी को

माँ सरस्वती का वन्दन

अभिनंदन करते बच्चे आज भी

विद्या के मंदिरों में


पीली सरसों फूली

कोयल कूके अमवा की डाली

पूछती हाल बसंत का

तभी कुनमुनाता नवकोंपल कहता


कहाँ है बसंत की मनोहारी छटा ?

वो उत्सव वो मेले ?

सब देखो हो गए हैं कितने अकेले

मैं भी विरल सा हो गया हूँ


उसकी बातें सुनकर

डाली भी करुण स्वर में बोली

मुझको भी ये सूनापन

बिलकुल नहीँ भाता !


विचलित हो बसंत कहता

मैं तो हर बरस आता हूँ

तुम सबको लुभाने

पर मेरे ठहरने को अब


कोई ठौर नहीं

उत्सव के एक दिन की तरह

मैं भी पंचमी तिथि को

हर बरस आऊंगा


तुम सबके संग

माता सरस्वती के चरणों में

शीश नवाकर

बासंती पर्व कहलाऊंगा !


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