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Keshav Upadhyay

Romance

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Keshav Upadhyay

Romance

कैसे बोलदूं यार की वो बेवफा थी

कैसे बोलदूं यार की वो बेवफा थी

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जब जब वो मुझे मिस किया करती थी,

मेरी फोटो को यूँ चुपके चुपके किस किया करती थी।


मिस कॉल दिया करती थी,

गलती से लग गया यह बोलकर

अपनी चाहत का इजहार किया करती थी।


आधी रात को-आधी रात को

टेलीफोन घुमाया करती थी,

कुछ ना बोलकर, कुछ ना बोलकर

बस आई लव यू बोल जाया करती थी।


कभी कभार-कभी कभार

थोड़ी नाराज सी हो जाया करती थी,

फिर भी-फिर भी खुद सॉरी बोल कर

मुझे मनाया करती थी। 


वो मुझसे प्यार किया करती थी,

और मैं किसी और से, वो मेरे प्यार की इम्तिहान सी थी, और मैं फेल था,

हर बार, हर उस इम्तिहान में,

जिसकी वह परीक्षिका थी।


माना कि अब वो मेरी नहीं,

किसी और की थी,

माना कि वो मुझसे थोड़ी खफा थी।

पर यार वफ़ा तो मुझ मेंं भी न थी,

कैसे भूल जाऊँ मैं अपनी इस खता को

और कैसे बोल दूंं यार,

कि वो बेवफा थी-और कैसे बोल दूं यार,

कि वो बेवफा थी।


देख कर मुझको अपनी गलियों मेंं,

वो बालकनी से फ्लाइंग किस उड़ाया करती थी

देख कर मुझको यूँ गिरते-पड़ते किस पकड़ते,

यूँ जोरों से खिलखिलाया करती थी।


माना कि वो उस गली की

इक सुंदर सी कली थी,

पर मैं आया न था उसके लिए,

वहाँ और भी एक सुंदर और अच्छी भली थी।


माना की रग-रग मेंं आज उसके

नफरत की ज्वाला जलती थी,

और बुझा ना पाया मैं नफरत की उस ज्वाला को,

बस यही-बस यही इक मेरी खता थी,

कैसे भूल जाऊं मैं अपनी इस खता को

और कैसे बोल दूंं यार, कि वो बेवफा थी।


ना बनाओ सिगरेट के धुओं का साथ,

ना लगाओ दारू की बोतल को हाथ,

ना घूमो दोस्तों के संग दिन और रात,

ऐसा बोल कर वो मुझे खूब सुनाया करती थी,

देखकर दोस्तों के संग अक्सर वो खीझ जाया करती थी।

गीत वो मेरे लिए दो, चार गाया करती थी,

हर पल हर लम्हा वो मुझको याद आया करती थी,

देकर यादें दस्तक उसकी तन्हाइयों मेंं

मुझे रुलाया करती थी।


आई थी, आई थी वो भी,

मेरे प्यार की इस जद मेंं,

मैं करता था, कभी भी, कुछ भी, कहीं भी,

कभी जुल्फ से तो कभी जिस्म से

वो भी बिना किसी हद मेंं।


क्या इससे भी बड़ी कोई खता हो सकती है,

क्या इससे भी बड़ी कोई खता हो सकती है?

अगर "हाँ" तो कैसे भूल जाऊं मैं,

अपनी इस खता को और

कैसे बोल दूंं यार कि वो बेवफा थी।

कैसे बोल दूंं यार कि वो बेवफा थी।


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