देखा तुझे जब पहली नज़र
देखा तुझे जब पहली नज़र
देखा तुझे जब पहली नज़र,
बन कर गिरी तू इस दिल में ग़ज़ल,
कॉलेेज की वो पहली परीक्षा थी,
तुझे देख तुझमें खो जाने की इच्छा थी,
सामने खड़ी तू दोस्तो से बातों में मसगुल थी,
तुझे निहारने की वो पहली मेरी भूल थी,
तेरे होने से तुझे पटाने को, यु.आइ.टी में भीड़ थी,
तुझे कोई देखे नजरे गड़ा के इस बात से,
यू.सी.एम के एक बन्दे को चिढ़ थी,
कौन हो तुम, किस जहां से आई हो,
जानने को तुझमें रुचि बेहिसाब था,
और नाम क्या है इस गुलाब का
यह जान ने को दिल 'केशव' का बेताब था।
बेताबी बेचैनी में बदली,
इस दिल ने तुझसे मिलने की
हर कोशिश कर ली।
मालूम चला शायद तुझको भी,
इस बेसब्र दिल की बेताबी,
पर फिर भी ना गौर किया जब तुमने,
तो हो कर रह गया मुखड़ा
तेरा इन आंखो पर हावी।
मिला था मौका कुछ हफ़्तों का
तेरे करीब होने की,
पर वो दिन थे परीक्षा के
प्रेशर को सर पर ढोने की।
जब सीट तेरा परीक्षा हाल में
बगल में पड़ा था,
ये दिल उम्मीदों से,
और मैंने कॉपी बिना रुके
जम के भरा था।
आते रहते है हर सेमेस्टर मौक़े तेरे दीदार के,
पर दिल तरस जाता है करने को
तुझसे दो शब्द प्यारे के।
कब समझेगी तू
केशव की नंदिता (ख़ुशी) को,
माना कि राम भी तड़पे थे
वर्षों मिलने को सीता को।
अब तो दो मौक़ा मोहब्बत वाले इस दिल को,
और खुदा कसम बिठाकर तुझको इस दिल में,
चूमूंगा हर लम्हा दिल से इस दिल को।
