कैसा सवाल कर गए तुम
कैसा सवाल कर गए तुम
आज मुझसे एक सवाल कर गए तुम
घर में बैठकर करती क्या हो तुम ?
मैं सारा दिन कमाता हूँ
पसीना बहाता हूँ धक्के खाता हूँ
सारी जरूरते तुम्हारी पूरी करता हूँ
घर में बैठकर करती क्या हो तुम ?
ये कैसा तुम सवाल कर गए
अश्क आँखों में ज़मा हो गए
ख्वाब सारे मुझसे खफा हो गए
माँ -बाप को तुम्हारे मैने अपना बना लिया
फिर क्यूँ तुमने मुझसे ऐसा सवाल किया
मैं क्या ! यही सोचती होगी हर औरत
तुमने की तो क्या हमने पूरी नहीं की तुम्हारी ज़रुरत ?
हमारे बनायें निवाले जो तुम खाते हो
उसकी बदौलत तुम कमाकर घर लाते हो
कभी कह दिया खाने में नमक ज़रा कम है
तुम्हे दिखा नहीं कब हमारी तबियत नम है ?
बच्चों और घर को संभालना क्या बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं ?
क्यूँ एक ग्रहनी की कद्र तुम्हे करनी आई नहीं
औरत के बिना कुछ नहीं हो तुम
कभी किसी से सवाल मत करना
घर में बैठकर करती क्या हो तुम ?
