कैसा सफर
कैसा सफर
न जाने ये कैसा
अनजान सफर है
जिस पर सब
दिन से रात
रात से दिन
चलते जा रहे है अनवरत
न जाने कहाँ है जाना
न जाने कहाँ है ठिकाना
बस सब भाग रहे हैं
एक दूसरे को हराते हुए
एक दूसरे को गिराते हुए
बस उस मंज़िल तक
पहुंचने के लिए
जिसका आज तक
कोई पता नहीं
सड़कें बहुत है
लेकिन सीधी कौन सी है
कोई अता पता नहीं
हर कोई दौड़ा जा रहा है
इस अनजान सफर में
हर कोई एक दूसरे को
छोड़े जा रहा है।
