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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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काश!

काश!

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काश!

जो भी बातें मेरी हों, वो बातों से निकल जाएं,

बात ही खत्म हो जाए।

काश!

जितने भी कटु हों, वे कटुता से निकल जाएं,

कटुता कटी सी रह जाए।

काश!

जितने भी झुकाव हों, वे झुकने से निकल जाएं,

अहंकार के सामने पड़े न झुकना।

काश!

जो भी पाप हों, वे पापों से निकल जाएं,

कोई फिर पापी न रह पाए।

काश!

मृत्यु हमारी, मृत्यु से निकल जाए,

चेतना आत्मिक ही बची रह जाए।

काश!

जितने भी जन्म हों हमारे, वे जन्मो से निकल जाएं,

सभी बंधन मुक्त हो जाएं।

काश!

मेरे ये सारे सपने मेरे ही सपनों से निकल जाएं,

मैं भी तुम संग जागृत हो जाऊं।


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