Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

4  

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

काश!

काश!

1 min
298


काश!

जो भी बातें मेरी हों, वो बातों से निकल जाएं,

बात ही खत्म हो जाए।

काश!

जितने भी कटु हों, वे कटुता से निकल जाएं,

कटुता कटी सी रह जाए।

काश!

जितने भी झुकाव हों, वे झुकने से निकल जाएं,

अहंकार के सामने पड़े न झुकना।

काश!

जो भी पाप हों, वे पापों से निकल जाएं,

कोई फिर पापी न रह पाए।

काश!

मृत्यु हमारी, मृत्यु से निकल जाए,

चेतना आत्मिक ही बची रह जाए।

काश!

जितने भी जन्म हों हमारे, वे जन्मो से निकल जाएं,

सभी बंधन मुक्त हो जाएं।

काश!

मेरे ये सारे सपने मेरे ही सपनों से निकल जाएं,

मैं भी तुम संग जागृत हो जाऊं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract