काश
काश
काश! आंखों में कोई सपना ना होता ,
काश ! वो सपने में कोई खयाल ना होता ,
उस ख़यालो मैं कोई रास्ता ना होता ,
उन रास्तों में कोई मंजिल ना होती।
तो फिर क्या रह जाती इस जिंदगी में?
बेमकसद, बेबजह नहीं बन जाती ये जिन्दगी?
ये दिन , महीने बस कहीं ठहर के रह जाती
ये लम्हा फालतू का लगने लगता
वो सपना ही तो है
जो जिन्दगी को इतनी सुन्दर बनाती है।
आंखों में खयाल ना होता तो क्या वो बन पाती इतनी खूबसूरत?
अगर राह ना होता तो ..
कहीं भटक के रह ना जाते ये पैर ?
अगर मंजिल ना होती तो ...
क्या मतलब रह जाता इस सफर का ?
यूँ ही ये कदम चलते रहे ...
यूँ ही आंखे सपने सजाते चले और
हर रास्ता को एक मंजिल मिलती जाए
यूँ ही मंजिल मिलती जाए।
काश ये पल यूँ ही कटता जाए
काश! ये पल यूँ ही कटता जाए.......।
